सहज अवतार महराज दर्शन दास जी ने दास धरम में एक प्रार्थना की रचना की, जिसे अरजोई कहा जाता है। परम पूज्य हुजूर महराज दर्शन दास जी ने कहा है कि कि "दास धर्म" के भक्तों को प्रत्येक सुबह की शुरुआत में अरजोई का प्रदर्शन करना चाहिए।
अरजोई दिव्य ईश्वर के नाम की महिमागान करता है जिसमें भगवान के आशीर्वाद का प्रवाह होता है। अरजोई प्रार्थना भक्त के विनम्र और उत्सुक हृदय से निकलती है, जो पूर्ण समर्पण और समर्पण में प्रार्थना अरजोई को भगवान के दिव्य कमल चरणों में रखता है। दास धरम के एक भक्त के हृदय से निकली सच्ची अरजोई प्रार्थना अनसुनी नहीं रह सकती।
"दास धरम" की अवधारणा अपने अनुयायियों को सामाजिक और आध्यात्मिक मोर्चे पर ऊपर उठाती है, और किसी के देश के प्रति सामाजिक कर्तव्यों और जिम्मेदारियों के बारे में जागरूकता भी पैदा करती है। यह विवाह में दहेज की बुराइयों के खिलाफ है, और दवाओं और विषाक्त पदार्थों के उपयोग पर रोक लगाता है। यह सभी धर्मों के प्रति श्रद्धा का उपदेश देता है।
हुजूर जी ने मंत्रमुग्ध करके कहा, "नानक नाम चढ़दी काला, तेरे भाणे सरबत दा भला।" शुभकामना संदेश के रूप में, और दोपहर 2 बजे के बीच ध्यान करना। दोपहर 2:15 बजे तक हर दिन, एक व्यक्ति को उसकी सभी सांसारिक ज़रूरतें पूरी होंगी और उसे कभी भी किसी भी तरह की कमी का अनुभव नहीं होगा।
धन नानक
नानक नाम चढ़दी कला, तेरे भाणे सरबत दा भला
नानक नाम चढ़दी कला, तेरे भाणे सरबत दा भला
नानक नाम चढ़दी कला, तेरे भाणे सरबत दा भला
नानक नाम चढ़दी कला, तेरे भाणे सरबत दा भला
नानक नाम चढ़दी कला, तेरे भाणे सरबत दा भला
अरजोई निराधार
हे दाता,
पहली उपमा तेरी दाता,
दूजी तेरी खुदाई।
तीजी तेरी ओट आसरा,
चौथी रहनुमाई।
पंच घरों सो तेरा मान,
पंचम सांझ जगाई।
मैं नीच तेरे दास को दासा,
धन नानक सब तेरी वडियाई।
नानक जोत निरंजन बण आई
प्रभ दर्शन अगम रूप कहाई
चड़विन्दा दास तिसकी शरणाई
तन, मन, धन सब भेंट चढ़ाई।
नानक नाम चढ़दी कला, तेरे भाणे सरबत दा भला
नानक नाम चढ़दी कला, तेरे भाणे सरबत दा भला
नानक नाम चढ़दी कला, तेरे भाणे सरबत दा भला
नानक नाम चढ़दी कला, तेरे भाणे सरबत दा भला
नानक नाम चढ़दी कला, तेरे भाणे सरबत दा भला
पूर्ण ईश्वर स्वरूप होते हुए भी सहज अवतार महाराज दर्शन दास जी ने अपने रूहानी रूप पर पर्दा डालते हुए अपने आपको ‘नीच’ अर्थात ‘दासों का दास’ ही कहा और ‘धन नानक सब तेरी वडियाई’ तक अरजोई रची लेकिन उनके परम सेवक व दास धर्म की दूसरी पातशाही महाराज चड़विन्दादास जी ने उनके प्रकाशमय रूहानी रूप को दर्शाते वाणी में फर्माया तथा अरजोई को आगे बढ़ाया :-
नानक जोत निरंजन बण आई
प्रभ दर्शन अगम रूप कहाई
चड़विन्दादास तिसकी शरणाई
तन, मन, धन सब भेंट चढ़ाई।